Monday, December 2, 2013

परिवर्तन


 

मेरे दीवार पर टंगी हुई घड़ी,
टक-टक करके चल रही है,
इसे किसी कि प्रतीक्षा हो जैसे,
या फिर कुछ पाने के लिए भाग रही हो!

समय सुबह से आरम्भ हुआ था,,
अब अँधेरा हो गया है, सुई गतिमान है,
इसके हर चाल के साथ पल ढल जाता है,
जीवन भी कुछ ऐसा ही है मानो,
उम्र कई साल पार कर चुकी है,

मौसम बदल रहा है,
कभी अपार गर्मी, कभी ठिठुरती सर्दी,
कभी सूखा तो कभी बाढ़ कि संभावनाए,
समाज नए- नए रंगो में नहाया हुआ,
पश्चिमी सभ्यता ने आकर महल बना लिया है,
हिंदी लुप्त होने कि कगार पर है,,
अंग्रेजी बोल-चाल का माध्यम,
भाईचारा, रिश्ता सब पैसे के पेड़ पर लटकी है,,
विश्वास स्वार्थ कि बलि चढ़ चुका है,
प्रेम का भी तोल-भाव  हो रहा है गुण-अवगुण के आधार पर!
 
अब केवल ज़रूरते व्यापक है,
हर व्यक्ति भागता हुआ नज़र रहा है,
सब प्राप्त कर लेने कि चाह में कैसे भी,,
यहाँ हर कोई मशीन बन गया है,
भावना रहित मशीन,,,

सच को प्रमाण कि आवश्यकता है,
झूठ पूरी तरह से आज़ाद..
ज्ञान के पद को अज्ञानी ने खरीद लिया है,
सब कुछ बिकाऊ हो गया है,,
ये परिवर्तन समय के साथ तेज़ी से हुआ है,

मैंने गहन विचारो और सीख के बाद जानकारी प्राप्त कि है,
कि ये श्रेष्ठता केवल आज के सदी के पास है,

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 13/11/13

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