Monday, December 2, 2013

संदेश


 

कहा था उसने एक "संदेश" में,

संस्कृत के 'श्लोक' में,

पढ़ा था उसे मैंने भी,

प्रत्येक उदहारण के साथ,

ये कर्म पत्र था,

कोई अनजान नगर से आया था,

नाम राम-रहीम-गुरुगोबिंद-ईसामसीह बताया था,

हसी आयी नाम देख,

ये बटी दुनियाँ के विधाता एक साथ कैसे?

जहाँ मजहबी बिगुल बजता है,

हिंसा तांडव करने लगती है,

ज़मीन बांटने कि मांग है,

कभी पुश्तैनी जमीन, कभी हिन्द कि ज़मीन,

काटते हैं इंसान को,

खून-खून हो जाती है माटी,

आँख पर बंध जाती है पट्टी क्रूरता कि,

फिर किसी नारी में बहन नज़र नही आती,

ये लोग क्या जाने रिश्तो कि माला-मोती,

कहीं बिलख रही माँ कहीं बेटी-बहु रोती,

पत्र उठा कर मैंने छिपा दिया है,

यदि किसी को प्राप्त हुआ,

तो नाम क चार हिस्से हो जायेंगे,

नही है ये उनके लिए जो कटरपंथी है,,

साम्प्रदायिक हिंसा का ताना-बाना बुनते हैं,

न ही अवसरवादियों के लिए,,

पूरा संदेश पढूंगी,

किन्तु जब धर्मवाद अपवाद होगा,

इंसान में समझ होगी, इंसानियत धर्म होगा,

विचार प्रत्येक का शुद्ध होगा..

सब भाव समझ पाएंगे,

पढूंगी तब पूरा "संदेश"!!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 14/11/2013

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