Saturday, December 7, 2013

!!कुछ तो कह दो कि अब ये तमाशा न बने!!




कुछ तो कह दो कि अब ये तमाशा न बने... 

वजह नयी कोई गम-ए-हताशा न बने...


फेकना है तो फेक इस कदर रंज-ए-तेज़ाब ...

कि फिर जिंदगी से मिल सकू ये आशा न बने...


डर इस बात का रह रह के मुझको सताता है, ..

वासना जोड़ कर प्रेम कि नयी परिभाषा न बने,..!!



ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

Dated : 7/12/13

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