Friday, December 6, 2013

नीम का पेड़


गावं कि घरुहि में था

वो नीम का पेड़

गर्मी के दिनों में चारपाई बिछा

सोते थे सब दोपहरिया में

उसके आस-पास लगा था

कई आम का पेड़,

लाल चूंटो के छत्ते लटकते थे उनपर,

इक इमली का पेड़ जिसकी 

खट्टी पत्तीओं को भी तोड़ खा जाती थी मैं,

छोटी थी मैं दादा जी डंडा लेकर दौड़ पड़ते थे

उस पेड़ से नीचे उतारने को 

चाचा जी सावन में झूला डालते थे,

उसी विशाल नीम के पेड़ कि इक टहनी पर,

सब सखियाँ उसपर चढ़

हवा से बाते करती थी,

बहुत दिन हुए गावं गए,

इस शहर में वो बात कहाँ,

हम सादे दिखते हैं तो कोई पूछता भी नहीं,

ज़रा इनके काबिल बनना पड़ेगा,

न इस शहर कि हवा में शान्ति हैं,

न ही रात को नींद चैन से आती है



नीम के पेड़ तले ये सकून महसूस किया था मैंने,

शहर आने से पहले आखिरी बार!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 4/12/2013

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