Thursday, February 13, 2014

एहसास को जीने कि......


ज्ञात है भौरे को
कमल कि पंखुड़ियों के
साये में आते ही
जीवन मुक्त हो जाएगा
किन्तु तालाब में
हरियाई काई के बीच
जन्मे गुलाबी पत्तियो के
इशारे पर पहुँच जाता है
उसके पास बिना किसी
भय और टाल-मटोल के..
मानसून में चींटी पंख लगा
चिराग कि लौ के
इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगती है
जबकि अनजान नहीं होती
वो इस सत्य से कि
इस जलन में झुलस के राख के ढेर में
तब्दील होने के अलावा
इस प्रेम का कोई अर्थ नहीं
किन्तु उससे अधिक गहरा
अर्थ है उस भाव में
जो वो अंतिम बार जियेगा 
धरती भी नहीं होती बेखबर कि
आकाश को आलिंगन तो दूर
कभी छू भी न पायेगी
बस निहारती रहेगी उसे दूर से
कभी उदास होगी तो बादल
छा लेगा उसे और बरस पड़ेगा
किन्तु उसकी प्रत्येक बूँद
उससे दूर होने कि पीड़ा व्यक्त करेगी
और साथ ही उसे तृप्त कर जायेगी
अथाह असमाप्त अनुराग से.. 
सरहदे नहीं देखता बेपरवाह है चाहत
हर पीड़ा झेल सकता है....
 
निसंदेह प्रेम सर्वोच्च है और
इसकी महानता को व्यक्त
शब्दो में नहीं किया जा सकता
उसके लिए जरुरत है इस एहसास को जीने कि!! 

 
 रचनाकार : परी ऍम श्लोक

 on the occasion of Valentine's day

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