Friday, February 7, 2014

!! ऐसी कल ना थी !!

दामन-ए-सकूं थी फटा आँचल न थी
जो मैं आज हूँ ऐसी कल ना थी 

तहज़ीब थी बाखूब चलने कि हमें
राह भटक जाऊं ऐसी पागल ना थी

कुछ वक़्त पहले ही ये कहर बरपा है
मन के हौज़रे में वरना उलझन ना थी

बेखौफ फांद जाते थे कैसी भी दीवार
फैसलो में मेरे इतनी सिहरन ना थी

हम आदि थे मुश्किलो से दोस्ती के
कांटो से कभी इतनी चुभन ना थी 

बेरंग हो गयी थी वो तस्वीर 'श्लोक'
बदनसीब इसकदर तो मेरी कलम ना थी


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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