Tuesday, March 18, 2014

!!दिल कि अमीरी लेकर!!

अज़ब इस शर्त पे हारी और बेहाल रही 
दिल कि अमीरी लेकर भी मैं कंगाल रही

उलझन कि जुल्फे सुलझाई मैंने तनहा ही
जिंदगी मेरे लिए मगर इक सवाल रही

तेरे बारे में जब सोचा तो ये ख्याल आया
इक साये के पीछे ता-उम्र मैं परेशान रही

शोहरत के हाथ ज़मीर बेचने वाले और होंगे
मेरे लिए तो मेरी गरीबी ही मेरा जहान रही

तेरा नाम मिटाते-मिटाते वक़्त कि सांस घिस गयी
यादो के जिस्म में मर कर भी इतनी जान रही

मुझे अपनी नज़र के ओंदे कि परवाह रही अक्सर
दुनिया दूसरो कि दीद में उठने कि गुलाम रही

मायूसियों ने कई बार मेरा रास्ता काटा
मगर मैं फिर भी खरे सिक्के सी इंसान रही


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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