Wednesday, March 26, 2014

"खालीपन"


इक खालीपन है
इस तमाम हुजूम
और
कुशादा के बावजूद
मैं हूँ मेरी परछाई है
जो साथ देती तो है
मगर उजालो के लालच में
अगर कहीं नहीं हो तो तुम
बस सन्नाटा है और तन्हाई है
बिखरे हुए सपने है
हर कदम पे चुभते है जो 
लेकिन पैरो में नहीं सीधे सीने में
उम्मीद है बुझी हुई
इस दिए में केवल अब
शबनम के कतरे बचे हैं
जो जलते नहीं सिर्फ जलाते हैं
कितने ज़रूरी हो तुम
जिंदगी के लिए.....
तुम्हे खोकर जाना मैंने
अब अगर चाँद-तारे भी
मेरे कदमो में आ गिरे
तो भी सब बेकार है
कोई भी खिलौना
कोई भी जीत
कोई भी आकर्षण 
अब मेरे मन के बच्चे को
मना नहीं सकता
वो हसी हसने को
जो तुम्हे देखने मात्र से ही
गुदगुदा देता था मुझे
कोई भी महफ़िल
मेरे अंदर के सूनेपन को
मिटा नहीं सकती
और
कोई भी बारिश
सूखे हुए संवेदना के रेगिस्तान को
अब कभी भी नम नहीं कर सकती
क्यूकि सब कुछ बीते लम्हो के
फैसलो के बादोलत हारा जा चुका है !!!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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