Saturday, March 15, 2014

"ख्यालो से कविता"

मैं तो सिर्फ
अपनी कलम से
सादे पन्नो पर
अपनी सोच कि
बेताब सी लकीर खींचती हूँ
कुछ कल्पनाओ के
आकर्षक मोती
हर्फ़ के रूप में पिरोती हूँ
 किरदार में जीने कि
उसके हालात को भापने कि
भावना को महसूस करने कि
इक छोटी सी कोशिश करती हूँ
सपनो को सहेज कर
विस्तार में रख लेती हूँ
कुछ हकीकत के परिंदे
लोगो के जहन में छोड़ देने कि
मुमकिन सी आरज़ू करती हूँ
जीती हूँ कुछ नेक पल
बेहद खामोश लम्हो में
जिसमे सारी अपेक्षाए
मेरी ओर मुड़ जाती हैं
औऱ मुझसे इमला लिखवा लेती हैं..

उसके बाद मैं जब उसे पढ़ती हूँ
तो मेरे सामने शब्दो कि
इक सुन्दर माला प्रस्तुत होती है..


कभी कभी तो
मुझे भी नहीं मालूम चलता कि
कब मेरे ख्यालो से कविता बन जाती है !!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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