Friday, April 11, 2014

"यूँ समेट लूँ ख्वाब"

यूँ समेट लूँ ख्वाब
कि फिर टूटा न लगे
तकदीर का नन्हा बच्चा
मुझे रूठा न लगे

मूँद लेती हूँ दिल कि तरह
ही आँखे अपनी
और फिर कोशिश करुँगी 
कोई मुझे झूठा न लगे

रोती हसरतो को
घर पहुँच के चुप कराना है
ताकि
जिंदगी के अलमारी से
खुशियो का खजाना लूटा न लगे

मैं हर जर्रे में
प्रेम का पौधा लगा दूंगी
कि फिर इस ज़मीन में
नफरत का कोई बूटा न लगे !!


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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