Wednesday, April 23, 2014

" आह ! माँ-बाबुल " (गीत)

आह ! बाबुल मेरे तू क्यूँ रोये
माँ तू क्यूँ बुरा अपना हाल करे
मेरे भाग्य जो लिख्या रब ने
हम चले आज वो तकदीर लिए

सलमा सितारों की चुनर पहना
फिर भी कुछ न भाये मुझे   
अपनों को बिसरा के क्यूँ बाबुल
अजनबियों को मोहे सौप दिए

सोच-सोच के मोहे डर लागे
अपना देश छोड़ परदेस चले

तेरे घर के आँगन मे खेली
छूटी जाएंगी सारी सखी सहेली
किसने रचया ये रीत विरह की
होती है मुझको तो पीड़ बड़ी

याद आएँगी माँ तेरी बातें
भूलूंगी कैसे ममता की सौगातें
बाबुल मैं तो तेरी सोन परी थी
उड़ गयी आज पंख लगाके

सुन ! बाबुल जी.. न अपना जलायो
बेटी का जीवन कौन बदल पायो
राजा-रंक भी हारे इस चलन से
कोई अपनी बेटी रोक न पायो

आह ! बाबुल मेरे तू क्यूँ रोये
माँ तू क्यूँ बुरा अपना हाल करे!!!


गीतकार : परी ऍम श्लोक

(ये गीत मैं हर उस इंसान को समर्पित करती हूँ जो किसी बेटी के माता-पिता है )

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