Thursday, April 17, 2014

!! अपने कांधो पे रिश्तो को ढोती रही !!

माँ है खुदा इस ज़मीन की
पत्नी जिंदगी आदमी की
बहन कड़ी हैं रिश्तो की
हर गुलशन की महकी सी
कली बेटी रही है

इस समझ से परे...

पुरुष समाज ने शोषण किया
औरत यहाँ शोषित होती रही है

कीचड़ को अपने दामन पर उलच् कर
अपने आंसुओ की धार से धोती रही है

सबने अपने लिए इसके सपने तोड़े
अपनों के लिए जो खुशियां पिरोती रही हैं

खुद से कभी उसे मिलने नही दिया गया
वो अपने कांधो पे रिश्तो को ढोती रही  हैं

सबकी मुस्कराहट बरकरार रहे ये सोच
अपने टीसो को झूठी तसल्लियाँ देती रही हैं

तुमने बदल दिया हैं सारे मायने इनके
तुम्हारी दीद में तो बस इनकी बोटी रही है

इस बात से तो वाकिफ समाज सारा है
मेरी कथनी कहाँ अलग और अनोखी रही है

कौन सा कानून बदल पाया है सोच ऐसी
मानसिकता से तो मानवता जलील होती रही है



Written By : परी ऍम 'श्लोक'

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