Friday, April 25, 2014

!! क्या तूने दस्तक यहाँ दी है ?!!

आज फिर इस तन्हाई ने हदें तोड़ी
तेरी यादो की महफ़िल सज़ा दी है

मैं प्यासा न मर जाऊं कहीं
आंसुओ की नदियां बहा दी हैं

चिराग बुझ के अँधेरा न करे
लो रूह तक मैंने जला दी हैं

जहाँ तक देखू तू नज़र आये
निगाहों में तस्वीर बना ली है

तेरी खुश्बू सी मुझको आई है
किसने एहसासो को हवा दी है ?

मुझे आहट सुनाई पड़ रही है
क्या तूने दस्तक यहाँ दी है ?

ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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