Friday, May 2, 2014

अगर तुम न होते तो........!!

कभी कभी मैं सोचती हूँ
अगर तुम न होते तो
कितनी महरूम होती मैं
जिंदगी के सजावटी आँचल तले
सादगी भरे सुन्दर रूप से
तुम बिन शायद मैं ऐसे होती
जैसे तमाम दौलत के बावजूद
जूझ रहा हो कोई इन्सां बिमारी से
जैसे सोना कोयले कि खान में पड़ा
अपने अस्तित्व के लिए बिलख रहा हो
जैसे ब्लैक-इन-वाइट दीवारे
सूरज कि रोशनी को तरस रही हों
लेकिन
अब अक्सर लगता है
सब कुछ बेपनाह खूबसूरत मुझे
न मुमकिन भी मुमकिन सा
हसीन होता जा रहा है हर मंज़र
बारिश कि बूंदे में मिठास
काले बादलो के बीच चमकती
वो बिजली जब भी गरजती है
मुझे तुम्हारे ओर करीब धकेल जाती है
हवाएं रागिनी गाती हुई लगती हैं
जब-जब मेरे पास से गुजरती हैं
तुम्हारे आने से पहले
सब कुछ सामान्य था
अब सब कुछ नवीन और सुन्दर है
कभी कभी तो ये भय भी सताता है
कहीं मैं कोई सपना तो नहीं बुन रही
आँख खोलूं तो ओझल हो जाए
फिर जब मैं एहसास करती हूँ
मेरी उंगलियो को तुम्हारी उंगलियो के बीच
तुम्हारी निगाहो की पुतलियो में अपना चेहरा
तुम्हारे शब्दों...विचारो में सिर्फ अपना तरुफ
तुम्हारे नाम के धागे में खुद को मोतियों सा गुथा
तब लगता है कि मैं इस ज़मी की नहीं
शायद जन्नत में आ बसी हूँ
जहाँ सिर्फ इक फ़रिश्ता है
और वो सिर्फ और सिर्फ मेरा है
तुम्हारे लिए इसकदर खास होना
मुझे अजब से गुमान में डाल देता है
जिस गुमान के परदे कि चमक
तुम्हारे रहते हुए
कभी कोई नहीं छीन सकता !!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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