Tuesday, June 3, 2014

"सुन्दर अनुभूति या सदमा"

क्या माँगा था ?
मैंने पूछा उससे
वो फफक बोली...
सिवाय प्रेम और कुछ नहीं
किन्तु मिला उसे क्या ?
खूबसूरत अहसास का सदमा
ऐसा दाग जिसको उभारा सबने
मिले उसे इस जंगल के
हर दो कदम पे खड़े वो लोग
जिनके जिह्वा की उंगली पे
घूमता है आकर्षक माला मोती
जिसकी चमक से चौंधिया जाता है मन
वश में कर देता है
मीठे शाब्दिक मंत्रो से
सोच-विचार अच्छा बुरा सब कुछ..

ये प्रेम भी कलयुग के चौखट से
प्रवेश करते ही
अपने औचित्य को त्याग बैठा 
कब इतना आगे निकल गया
पता न चला कि
बाज़ारो में कब बेचा जाने लगा प्रेम ?
कब खरीदा जाने लगा देह?
कब नंगा हो गया प्रेम ? !!!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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