Wednesday, August 20, 2014

'समाज के महाखलनायको बताओ मुझे'

आखिर क्यों पापा
मैं आपके लिए सिर्फ
इज्जत की पगड़ी बन के रह गयी
जो मेरी मर्जी की बात आते ही
अक्सर उछल जाया करती रही
क्यों माँ मैं आपके लिए
आपके संस्कारो और आदर्शो की
मात्र ओढ़नी सी रही
जैसे मेरी चाहते कोई कांटा हो
जिसमे में ये ओढ़नी फस के
बार-बार फट जाया करती रही
भाई तुम तो मेरे रक्षक थे न
जिसे मैंने कई वर्षो तक
भाई बहन के प्यार का साक्षी
पवित्र धागा बाँधा था
फिर कैसे रक्षाबंधन के धागे को
मेरे लिए
कभी फाँसी ..कभी गोली,,,कभी जहर,,
तो कभी चाक़ू छूरी बनाया तुमने
प्रेम करना बुरा तो नहीं
आपने ही तो सिखाया था
प्यार का महत्व जीवन में
तो फिर बस यही तो किया मैंने
सिर्फ प्रेम अपनी मर्जी का
जीवन साथी चुनने का साहस
नहीं आपकी नज़र में ये दुस्साहस है
बेशक बिलकुल नहीं जाना धर्म..जात....औकात
प्रेम करने से पहले ..
और आज मैं आपके लिए अपराधी बन गयी
सिर्फ एक अनुभूति का पनपना मेरे मन में
आपके नफरत का सबब बन गया
सब कुछ एक क्षण में परवर्तित हो गया
और आप सबने मिलके
रिश्ते को तार-तार कर दिया
मुझे मार कर लटका दिया
चौराहे पर
छीन लिया मेरे जीने का अधिकार
आखिर क्यों
और फिर कायरो कि तरह
अपनी काली करतूतो पे फेरते रहे
झूठे आंसुओ का रुमाल
लेकिन मुझे बताओ तुम
समाज के महाखलनायको
जलीलो ... असंवेदनाओ के जहरीले साँपो
कि आज तुम्हारी पगड़ियों में
कितने नगीने लग गए
इस क्रूर कृत्य से उपरान्त
आज तुम्हे कितने लोग सलामी दे रहे हैं
कौन झुकाये खड़ा है तुम्हारे सामने सर
आइना लाओ निहारो अपने आप को
झुकाये सर खड़े होंगे
दुनिया के सबसे हारे हुए ..गिरे हुए..हिंसक इंसान
जिसकी आत्मा
जिन्हे बार-बार लगातार दुत्कार रही होगी
मुझे जवाब दो 
कब तक चलेगा
इस घिनौने अपराध का सिलसिला
परम्पराओ आदर्शो ,
शान और सम्मान के नाम पर !!!


___________________परी ऍम 'श्लोक'

2 comments:

  1. सुन्दर और संवेदनशील रचना

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  2. आखिर क्यों
    और फिर कायरो कि तरह
    अपनी काली करतूतो पे फेरते रहे
    झूठे आंसुओ का रुमाल
    लेकिन मुझे बताओ तुम
    समाज के महाखलनायको
    जलीलो ... असंवेदनाओ के जहरीले साँपो
    कि आज तुम्हारी पगड़ियों में
    कितने नगीने लग गए
    इस क्रूर कृत्य से उपरान्त
    आज तुम्हे कितने लोग सलामी दे रहे हैं
    सार्थक सवाल उठाती रचना

    ReplyDelete

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