उठी मंदिर से चिंगारी शरारे मस्जिदों से
गए टकरा वो आपस में पुराने दुश्मनों से
न कोई शख़्स था जिन्दा
बचा इस आग से फिर
लहू यूँ हो गयी इंसानियत थी मज़हबों से
सियासत खूब गरमायी किसी
की लाश पर थी
चिता ठंडी हुई गाँधी छपे फिर काग़ज़ों से
जला है आशियाँ जिनका कि
पूछो बुलबुलों से
जिन्हें काटा गया तलवार
से था उन गुलों से
कलाई जिस बहन के
राखियों की छिन गयी है
है उजड़ी कोख़ जिनकी पूछिये उन जननियों
दफ़न है दर्द
का ये जलजला जिनके दिलों में
कभी जाकर ज़रा पूछो सितम खाए घरों से
जहाँ हर धर्म इक जैसा वहाँ पर ये फ़सादत
हुई जाती है क्यूँ हर रोज़ पूछो जाहिलों से
© परी ऍम. 'श्लोक'
बहुत सी सुन्दर लेखन
ReplyDeleteसियासत खूब गरमायी किसी की लाश पर थी
ReplyDeleteचिता ठंडी हुई गाँधी छपे फिर काग़ज़ों से
...वाह...बहुत उम्दा और सटीक प्रस्तुति...सभी अशआर दिल को छूते हुए
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजहाँ हर धर्म इक जैसा वहाँ पर ये फ़सादत
ReplyDeleteहुई जाती है क्यूँ हर रोज़ पूछो जाहिलों से
बहुत बढिया परी जी...
बहुत बढ़िया और सामयिक।
ReplyDeleteभावनात्मक |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
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ReplyDeleteरवि राजपुरी रविंदर गुडवानी's profile photo
ReplyDeleteरवि राजपुरी रविंदर गुडवानी
दिल से निकले शब्द ... दिल को छु गए ..
काश ! मेरे दिल से भी ऐसे उद्गार (फीलिंग्स) शायरी की शक्ल में निकल सकते ..
नमन !!
बहुत बेहतर
ReplyDeleteबहुत बेहतर
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